आईएसआई अधिनियम, 1959

आईएसआई अधिनियम 1959

भारतीय सांख्यिकी संस्थान अधिनियम 1959
1959 का 57 (24 दिसंबर, 195
9)

भारतीय सांख्यिकी संस्थान जिसका पंजीकृत कार्यालय कोलकाता में है, को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित करने और इससे संबद्ध मामलों का प्रावधान करने के लिए अधिनियम

भारतीय गणतंत्र के दसवें वर्ष में इसे संसद द्वारा निम्न प्रकार अधिनियमित किया गया:-

भारतीय सांख्यिकी संस्थान अधिनियम 1959

संक्षिप्त नाम तथा प्रवर्तन की तारीख

1956 का 3

1. (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम भारतीय सांख्यिकी संस्थान अधिनियम 1959 है ।

(2) यह ऐसी तारीख से प्रवृत्त होगा जो केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा नियत करे ।
(क) "संस्थान" से सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के अधीन रजिस्ट्रीकृत भारतीय सांख्यिकी संस्थान अभिप्रेत है;
(ख) "ज्ञापन" से सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के अधीन ज्वाइंट स्टाक कंपनियों के रजिस्ट्रार के पास फाइल किया गया संस्थान का संगम ज्ञापन अभिप्रेत है; (ग) "नियम और विनियम " के अंतर्गत वे नियम और विनियम (चाहे जिस नाम से सम्बोधित किए जाएं) आते हैं जो संस्थान सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के अधीन उसको प्रदत्त शक्ति के प्रयोग में बनाने के लिए सक्षम है, किंतु इसके अंतर्गत उसके दैनिक प्रशासन के संचालन के लिए नियमों और विनियमों के अधीन बनाई गई उपविधियां या स्थायी आदेश नहीं है ।

3. यत: भारतीय सांख्यिकी संस्थान के नाम से ज्ञात संस्था के उद्देश्य इस प्रकार के है कि वे उसे राष्ट्रीय महत्व की संस्था बनाते हैं अत: एतद्द्वारा यह घोषित किया जाता है कि भारतीय सांख्यिकी संस्थान एक राष्ट्रीय महत्व की संस्था है ।

**4. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 मं या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, संस्थान ऐसी परीक्षाएं ले सकता है और ऐसी उपाधियां और डिप्लोमा दे सकता है जो समय-समय पर संस्थान द्वारा अवधारित की जाए ।

5. संस्थान को अपने कृत्यों का, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय विकास के लिए योजना में सम्बन्धित अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण, परियोजना सम्बंधी कार्य और सांख्यिकी कार्य हैं, दक्षतापूर्ण निर्वहन करने के लिए समर्थ बनाने के प्रयोजनार्थ, केंद्रीय सरकार, संसद द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा सम्यक विनियोग किए जाने के पश्चात् संस्थान को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में ऐसी धन राशियां, जो सरकार आवश्यक समझे, अनुदान, उधार या अन्य रीति में संदाय कर सकती है ।



6. (1) संस्थान के लेखों की संपरीक्षा, कंपनी अधिनियम, 1956 के अधीन कंपनियों के संपरीक्षक के रूंप में कार्य करने के लिए सम्यकत: अर्हित संपरीक्षकों द्वारा की जाएगी और संस्थान ऐसे संपरीक्षक नियुक्त करेगा जिन्हें केंद्रीय सरकार भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ओर संस्थान के परामर्श के पश्चात् चयन करे ।
(2) केंद्रीय सरकार संपरीक्षकों को उनके कर्तव्यों के पालन के लिए ऐसे निदेश जारी कर सकती है जो वह ठीक समझे ।
(3) ऐसे प्रत्येक संपरीक्षक की अपने कर्तव्यों के पालन के लिए सभी युक्तियुक्त समयों पर संस्थान के रजिस्टर लेखा पुस्तकों, अभिलेखों और अन्य दस्तावेजों तक पहुच होगी ।
(4) संपरीक्षक अपनी रिपोर्ट संस्थान को देंगे और उसकी एक प्रति सूचनार्थ केंद्रीय सरकार को अग्रेषित करेंगे ।

7. सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 या संस्थान के ज्ञापन या नियमों ओर विनियमों में किसी बात के होते हुए भी, केंद्रीय सरकार के पूर्वानुमोदन के बिना, संस्थान
(क) उन प्रयोजनों में से किसी को परिवर्तित, विस्तारित या न्यून नहीं करेगा जिनके लिए वह स्थापित किया गया था या जिनके लिए इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पहले उसका उपयोग किया जा रहा है, या अपने को किसी अन्य संस्थान या सोसायटी से पूर्णत: या अंशत: समामेलित नहीं करेगा; या
(ख) किसी रीति में अपने ज्ञापन या नियम और विनियमों को परिवर्तित या संशोधित नहीं करेगा; या
(ग) केंद्रीय सरकार द्वारा विशिष्टत: अर्जन के लिए उपबन्धित धन से संस्थान द्वारा अर्जित किसी संपत्ति का विक्रय या अन्यथा व्ययन नहीं करेगा: परंतु ऐसी किसी जंगम संपत्ति या जंगम संपत्ति के वर्ग के लिए, जो केंद्रीय सरकार द्वारा साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निर्मित विनिर्दिष्ट किया जाए, ऐसा अनुमोदन आवश्यक नहीं होगा, या
(घ) विघटित नहीं होगा ।

8. (1) केंद्रीय सरकार ऐसी संस्था में व्यिक्तयों वाली और इतनी समितियां, जिन्हें वह नियुक्त करना ठीक समझे, जैसे और जब आवश्यक समझे नियुक्त कर सकती है और ऐसी प्रत्येक समिति को निम्नलिखित कर्तव्यों में से सभी या कोई सौंप सकती है, अर्थात्-
(क) यथासंभव प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ के पहले उस वर्ष के दौरान संस्थान द्वारा किए जाने वाले उस काम के कार्यक्रम का विवरण जिसके लिए संस्थान सहमत हो गया है और जिसके लिए केंद्रीय सरकार निधिया दे सकती है, और ऐसे काम के सम्बन्ध में साधारण वित्तीय प्राक्कलन तैयार करना और केंद्रीय सरकार को प्रस्तुत करना, और
(ख) ऐसा कार्यक्रम मोटे तौर से तय करना ।

(2)जब संस्थान उपधारा (1) में निर्दिष्ट समिति द्वारा सुझाया गया कोई काम लेने में सहमत नहीं होता है तो वह केंद्रीय सरकार को ऐसे सहमत न होने के अपने कारण देगा ।


9. (1) केंद्रीय सरकार एक समिति गठित करेगी जिसमें उतनी संख्या में व्यिक्त होंगे जितने वह निम्नलिखित मंत्रालयों के लिए नियुक्त करना ठीक समझे, अर्थात्-
(क) संस्थान द्वारा किए गए काम ओर उसकी प्रकृति का पुनर्विलोकन
(ख) उसके भवन, उपस्कर और अन्य आस्तियों का निरीक्षण
(ग) संस्थान द्वारा किए गए काम का मूल्यांकन, और
(घ) सरकार को साधारणत: किसी ऐसे मामले में सलाह देने के लिए जो केंद्रीय सरकार की राय में संस्थान के काम के सम्बन्ध में महत्व की है: और समिति उस पर अपनी रिपोर्ट ऐसी रीति में देगी जो केंदीय सरकार निदेश करे ।

(2) प्रत्येक दशा में पुनर्विलोकन, निरीक्षण या मूल्यांकन के आशय की सूचना संस्थान को दी जाएगी ओर संस्थान एक प्रतिनिधि नियुक्त करने का हकदार होगा जिसको ऐसे पुनर्विलोकन, निरीक्षण या मूल्यांकन में उपस्थित होने और सुने जाने का अधिकार होगा ।

(3)केंद्रीय सरकार ऐसे पुनर्विलोकन निरीक्षण या मूल्यांकन की उपधारा (1) में निर्दिष्ट समिति की रिपोर्ट में जो प्रकट है उस परिवर्तन के निर्देश में संस्थान के अध्यक्ष को सम्बोधित कर सकती है, और अध्यक्ष उस पर की गई कार्यवाही की, यदि कोई हो, सूचना केंद्रीय सरकार को देगा ।

(4) जब केंद्रीय सरकार ने उपधारा (3) के अनुसरण में, किसी मामले के सम्बन्ध में संस्थान के अध्यक्ष को सम्बोधित किया है और अध्यक्ष उसकी बावत केंद्रीय सरकार के समाधानपर्यन्त युक्तियुक्त समय के अंदर कोई कार्यवाही नहीं करता है तो, केंद्रीय सरकार, संस्थान द्वारा इस निमित दिए गए किन्ही स्पष्टीकरणों और अभ्यावेदनों पर विचार करने के पश्चात्, उस रिपोर्ट में चर्चित मामलों की बावत ऐसे निदेश दे सकती है जो वह आवश्यक समझे ।

10. धारा 8 या धारा 9 के अधीन गठित समिति को उसके कर्तव्यों को करने में समर्थ बनाने के प्रयोजन के लिए संस्थान सभी आवश्यक सुविधाएं देने के लिए आबद्ध होगा ।

11 (1) केंद्रीय सरकार, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि लोकहित में ऐसा करना आवश्यक है तो, ऐसे कारणों के आधार पर जो अभिलिखित और संस्थान को सूचित किए जाएंगे, संस्थान को ऐसे निदेश दे सकती है, जो वह ठीक समझे, और ऐसे निदेशों के अंतर्गत संस्थान से निम्नलिखित अपेक्षा करने वाले निदेश भी आते हैं,-
(क) ऐसी कालावधि के अंदर जो निदेश में विनिर्दिष्ट की जाए ज्ञापन का संशोधन करने के लिए या किसी नियम या विनियम को बनाने या संशोधन करने के लिए;
(ख्) ऐसी रीति में, जो केंद्रीय सरकार इस निर्मित विनिर्दिष्ट करना ठीक समझे, संस्थान द्वारा लिए गए या लिए जाने वाले काम को पूर्विकता देने के लिए ।
(2) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में या संस्थान के ज्ञापन या नियमों और विनियमों में किसी बात के होते हुए भी इस धारा के अधीन किए गए निदेश प्रभावी होंगे ।

12.(1) यदि केंद्रीय सरकार की राय में-
(क) संस्थान ने न्यायपूर्ण या युक्तियुक्त कारण के बिना धारा 9 की उपधारा (4) या धारा 11 के अधीन जारी किए गए किसी निदेश को प्रभाव देने में व्यिक्तक्रम किया है या

1860 का 21

1860 का 21

  • लोक सभा (14 दिसंबर, 1959) और राज्य सभा (1 दिसंबर, 1959) में विचार-विमर्श के बाद तथा 24 दिसंबर, 1959 को राष्ट्रपति की सहमति के उपरांत भारत के राजपत्र नई दिल्ली के असाधारण अंक भाग- II -खंड- I ,संख्या 46 में पृष्ठ सं. 486-490 पर 26 दिसंबर, 1959 को प्रकाशित किया गया ।

** भारत सरकार के दिनांक 5 सितंबर, 1959 के असाधारण अंक के भाग- II खंड सं. 54 में प्रकाशित भा.सां.से. (संशोधित) अधिनियम, 1995 (1995 का 38) के द्वारा संशोधित ।

1956 EòÉ 1

1860 EòÉ 21

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